आज के इस लेख में हम बात करेंगे नर नारायण पर्वत के बीच में स्थित बद्रीनाथ धाम की जो कि भारत के चार धामों में से एक है और उत्तराखण्ड के चमोली जिले में स्थित है। हम आपको पूरी जानकारी देंगे कि आपको यहां कैसे जाना चाहिए, कब जाना चाहिए, यहां पर रहने और खाने पीने की क्या व्यवस्था होगी, और इस यात्रा का कुल खर्चा कितना आयेगा। इस जानकारी से आपको बद्रीनाथ धाम की यात्रा करने में मदद मिलेगी।
बद्रीनाथ कहाँ है? | Where is Badrinath?
बद्रीनाथ उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यह हिमालय की गढ़वाल पर्वतमाला में है। मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर है।
बद्रीनाथ जाने का सबसे अच्छा समय | Best Time to Travel in Badrinath?
बद्रीनाथ धाम के कपाट अक्षय तृतीया के अवसर पर यानी मई के महीने में खुलते हैं और कार्तिक पूर्णिमा यानी अक्टूबर के समय बंद किए जाते हैं। यानी यहां दर्शन के लिए 6 महीने का समय होता है। अगर आप भीड़ भाड़ से बचना चाहते हैं तो आपको यहां सितंबर अक्टूबर के समय जाना चाहिए क्योंकि इस समय यहां पर होटल वगेरह की कॉस्ट भी कम होती है और दर्शन में भी 3 से 4 घंटे का समय लग सकता है।
साथ ही मानसून में लैंडस्लाइड होने की वजह से यहां पर मार्ग बंद रहते हैं जिससे आपको यात्रा में परेशानी हो सकती है। अतः आप इस समय यहां पर जाना अवॉइड करें। अब बात करें स्टे प्लान की तो अगर आप चार धाम यात्रा के बजाय सिर्फ बद्रीनाथ धाम की यात्रा कर रहे हैं तो आपको 3 से 4 दिन का स्टे प्लान करना चाहिए। जिसमे 2 दिन आपको आने जाने में लगेंगे और बाकी 2 दिन आप बद्रीनाथ के दर्शन करके बाकी के स्थान भी घूम सकते हैं।
बद्रीनाथ का इतिहास? | History of Badrinath?
बद्रीनाथ मंदिर के इतिहास के अनुसार, यहां के पीठासीन देवता की लंबाई लगभग 1 मीटर है और वह भगवान विष्णु की एक काले पत्थर की मूर्ति है जिसका नाम बद्रीनारायण है। कहा जाता है कि यह छवि आठ स्वयं व्यक्त क्षेत्रों में से एक है, जिसमें भगवान विष्णु को स्वयं प्रकट होने के रूप में चित्रित किया गया है।
जहां तक इस स्थान का इतिहास है, ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु एक शांत, प्रदूषण रहित और दिव्य स्थान की तलाश में ध्यान में बैठने के लिए इस स्थान पर आए थे। भगवान विष्णु ध्यान में इतने तल्लीन थे कि वे अपने शरीर के बारे में भूल गए और उस जगह पर पड़ने वाली कड़कड़ाती ठंड से पूरी तरह अनजान थे।
देवी लक्ष्मी पूरे समय भगवान विष्णु के साथ रहीं और उनकी देखभाल की। उन्होंने भगवान विष्णु को मौसम की मार से बचाया और बद्री वृक्ष का रूप धारण किया। बद्री वृक्ष को भारतीय खजूर या बेर के नाम से जाना जाता है। देवी लक्ष्मी की अगाध भक्ति से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने इस स्थान का नाम बद्रिकाश्रम रखा।
ऐतिहासिक वृत्तांतों पर गौर करें तो यह स्थान कभी बद्रिका वृक्षों से भरा हुआ था। हालाँकि, आजकल ये पेड़ देखने को नहीं मिलते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार, बद्रीनाथ धाम में धर्म के दो पुत्र अक्सर आते थे, जिनका नाम नर और नारायण था। नर और नारायण दोनों वास्तव में भगवान विष्णु के मानव अवतार थे।

नारा और नारायण एक आदर्श स्थान की तलाश में थे क्योंकि वे अपना आश्रम स्थापित करना चाहते थे। उन्होंने अलकनंदा नदी के किनारे गर्म और ठंडे झरनों की खोज की। इसलिए, उन्होंने उस स्थान का नाम बद्री विशाल रखा और धर्म के प्रसार के लिए अपना आश्रम स्थापित किया।
यहां तक कि हिंदू वेदों में देवता बद्री नारायण के साथ-साथ उत्तराखंड के बद्रीनाथ क्षेत्र में उन्हें समर्पित मंदिर का भी उल्लेख है। ऐतिहासिक विवरण बताते हैं कि 1750 से 500 ईसा पूर्व के बीच इस स्थान पर एक मंदिर मौजूद था
कुछ लोगों का कहना है कि यह मंदिर 8वीं शताब्दी तक बौद्ध तीर्थस्थल के रूप में बना रहा, जब आदि शंकराचार्य ने इसे हिंदू मंदिर में बदल दिया । वास्तव में, मंदिर की वास्तुकला बौद्ध विहार प्रकार की वास्तुकला को दर्शाती है। इसके अग्रभाग चमकीले रंग के हैं। इसके अलावा, ऐसे कई अन्य पहलू हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि यह मूल रूप से एक बौद्ध स्मारक था।
यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने राजा कनक पाल की सहायता से बौद्धों को इस स्थान से बाहर निकाला था। राजा ने मंदिर की देखभाल के लिए भारी दान भी दिया। हालाँकि, अन्य ऐतिहासिक अभिलेख बताते हैं कि बद्री धाम की स्थापना 9वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा एक तीर्थस्थल के रूप में की गई थी। इसके अलावा, आदि शंकराचार्य ने 814 और 820 के बीच यहां निवास किया था।
यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने अलकनंदा नदी से देवता की खोज की और इसे तप्त कुंड गर्म झरनों के पास एक गुफा में स्थापित किया। बाद में, उन्होंने इसी स्थान पर भगवान विष्णु के लिए एक मंदिर का निर्माण कराया। अपने प्रवास के दौरान, आदि शंकराचार्य छह महीने बद्रीनाथ में और अगले छह महीने केदारनाथ में रहे।
तो, अब हम इस बात की सराहना कर सकते हैं कि बद्रीनाथ मंदिर का एक समृद्ध और लंबा इतिहास है। साथ ही, सत्रहवीं शताब्दी और उन्नीसवीं शताब्दी ईस्वी के बीच मंदिर का कई बार नवीनीकरण किया गया। कुंभ मेले ने बद्रीनाथ मंदिर में आगंतुकों की संख्या को मौजूदा संख्या तक बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो अब हर साल लाखों में होती है।
बद्रीनाथ का मंदिर शहर प्रकृति की शांत सुंदरता के बीच स्थित है। इसे भगवान विष्णु का प्रमुख निवास स्थान माना जाता है। वास्तव में, बद्रीनाथ धाम भारत में चार धाम तीर्थयात्रा सर्किट के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। अन्य चार धाम स्थल पुरी, रामेश्वरम और द्वारका हैं।
बद्रीनाथ भी उत्तराखंड में छोटा चार धाम यात्रा से संबंधित है जिसमें यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे स्थल शामिल हैं। गढ़वाल हिमालय की छोटा चार धाम तीर्थ यात्रा में बद्रीनाथ सबसे प्रसिद्ध स्थान है।
बद्रीनाथ धाम नर और नारायण चोटियों के बीच स्थित है। बद्रीनाथ धाम तक मोटर योग्य सड़कों द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां तक आसान ट्रेक पर चलकर भी पहुंचा जा सकता है। तीर्थयात्री नीलकंठ की चोटी को आसानी से देख सकते हैं जो अपनी शक्तिशाली आभा फैलाए हुए मजबूती से खड़ी है।
सड़क, ट्रेन और हवाई मार्ग से बद्रीनाथ कैसे पहुँचे? | How to Reach Badrinath?
- ट्रेन से बद्रीनाथ कैसे पहुचें – अगर आप दूसरे राज्यों या शहरों से बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर निकलते हैं तो आपके पास इसके लिए दो साधन है। पहला है बाय ट्रेन। यहां का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार और ऋषिकेश है। यहां से आगे का सफर आपको बाय बस या टैक्सी से ही तय करना होगा।
- फ्लाइट से बद्रीनाथ कैसे पहुचें – दूसरा साधन है बाय फ्लाईट । यहां पर सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट जौलीग्रांट है जो की देहरादून में स्थित है।
- सड़क से बद्रीनाथ कैसे पहुचें – देहरादून, हरिद्वार तथा ऋषिकेश से आगे का सफर आपको बस या टैक्सी से तय करना होगा जिसमे 8 से 10 घंटे का समय लग जाता है। बात करें बस के किराए की तो देहरादून या हरिद्वार से बद्रीनाथ तक लगभग 550 रुपए प्रति व्यक्ति तक होगा। यदि आपको डायरेक्ट बद्रीनाथ तक बस नही मिलती है तो आप जोशीमठ तक की बस ले सकते हैं। जोशीमठ से बद्रीनाथ लगभग 45 किलोमीटर दूर है। ये दूरी आप टैक्सी से तय कर सकते हैं। जिसका किराया लगभग 100 रुपए प्रति व्यक्ति तक होता है। साथ ही अगर आप प्राइवेट टैक्सी बुक करते हैं तो इसका किराया लगभग 6000 से 7000 रुपए तक पड़ेगा।
प्रकार | मार्ग | दूरी | दर्शनीय समय | लागत (आशयी लागत रेंज) |
---|---|---|---|---|
वायुमार्ग | देहरादून से | लगभग 317 किलोमीटर | 9 घंटे | Rs. 3000 – 5000 |
रेलमार्ग | रिशिकेश रेलवे स्टेशन से | लगभग 295 किलोमीटर | 7 घंटे | Rs. 2000 – 4000 |
सड़कमार्ग | रिशिकेश से | लगभग 298 किलोमीटर | 8 घंटे | Rs. 2500 – 4500 |
बद्रीनाथ की ऊंचाई और तापमान?
बद्रीनाथ समुद्र तल से लगभग 3,100 मीटर (10,170 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, तापमान –
महीना | उच्चतम तापमान (°सेल्सियस) | न्यूनतम तापमान (°सेल्सियस) |
---|---|---|
जनवरी | 6 | -2 |
फरवरी | 9 | 1 |
मार्च | 14 | 4 |
अप्रैल | 18 | 8 |
मई | 21 | 11 |
जून | 23 | 14 |
जुलाई | 22 | 15 |
अगस्त | 22 | 15 |
सितंबर | 20 | 13 |
अक्टूबर | 17 | 8 |
नवंबर | 12 | 4 |
दिसंबर | 7 | 0 |
बद्रीनाथ में रहने और खाने पीने की व्यवस्था?
बद्रीनाथ पहुंचने पर आपको यहां पर ठहरने के लिए 3 विकल्प मिल जायेंगे। पहला और सबसे सस्ता विकल्प है आश्रम जो की 24 घंटे का 100 से 200 रुपए तक चार्ज करते हैं। दूसरा विकल्प है GMVN का गेस्ट हाउस। यहां पर उत्तराखण्ड सरकार द्वारा डॉरमेटरी बनी हुई हैं जिनका किराया लगभग 50 रुपए प्रति बेड होता है।
तीसरा विकल्प है प्राईवेट होटल्स जहां पर आपको 500 से 1000 रुपए तक के रुम मिल जायेंगे। अब बात करें यहां पर खाने पीने की व्यवस्था की तो यहां पर आपको बहुत से रेस्टुरेंट मिल जायेंगे जहां पर आपको थाली सिस्टम से एक समय का खाना लगभग 80 से 150 रुपए तक मिल जायेगा।
बद्रीनाथ धाम में दर्शन कैसे करें?
अगर बात करें कि बद्रीनाथ में दर्शन की क्या प्रक्रिया होती है तो सबसे पहले आपको स्नान करना होता है। यहां पर मंदिर के पास में एक तप्तकुंड यानी गरम पानी का कुंड है जहां पर श्रद्धालु दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं। इसके बाद आप दर्शन से पहले ध्यान रखें कि यहां पर किसी भी प्रकार का मोबाइल कैमरा आदि वर्जित है। दर्शन करने के बाद बाहर निकलने पर आपको यहां पर मिलेगा ब्रह्मकपाल जो की तप्तकुंड के पीछे स्थित है। यहां पर पिण्ड दान किया जाता है।
बद्रीनाथ धाम में घूमने के अन्य स्थान?
हिंदुस्तान का अंतिम गांव माणा –
बद्रीनाथ में घूमने की दूसरी जगहों की बात करें तो सबसे पहले आता है भारत का आखिरी गांव यानि माणा जो कि बद्रीनाथ से 3 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। इस गांव के बाद इंडिया चाइना का बॉर्डर शुरू हो जाता है। यहां पर आपको काफी सुन्दर नजारा देखने को मिलेगा।
भगवान विष्णु जी की चरण पादुका –
दूसरे स्थान की बात करे तो यह है भगवान विष्णु जी की चरण पादुका जो की बद्रीनाथ से ढाई किलो मीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है। कहा जाता है कि जब विष्णु भगवान पहली बार धरती पर आए थे तो यही स्थान था जहां पर उन्होंने सबसे पहले अपने कदम रखे थे। तो आप यहां पर भी दर्शन कर सकते हैं।
व्यास गुफा बद्रीनाथ –
अगला स्थान है व्यास पोथी या व्यास गुफा। यहां पर व्यास जी का मंदिर व गुफा स्थित है जिसके भी आप दर्शन कर सकते हैं।
व्यास गुफा से थोड़ी ही दूर पर गणेश गुफा भी स्थित है ।
भीम पुल बद्रीनाथ –
भीम पुल जो कि भीम के द्वारा निर्मित है। कहा जाता है की जब पाण्डव स्वर्ग जा रहे थे तो सरस्वती नदी के बहाव के कारण वे इसे पार नहीं कर पा रहे थे। तब भीम ने एक बड़ी शीला के माध्यम से पुल का निर्माण किया था और सरस्वती नदी की पार किया था। साथ ही यहां पास में ही सरस्वती माता का मंदिर भी है जिसके आप दर्शन कर सकते हैं।
यहां से थोड़ा आगे जाने पर आपको हिंदुस्तान की अंतिम दुकान भी मिलेगी। यहां पर आप चाय नाश्ता कर सकते हैं और इसके साथ आप एक मेमोरी क्रिएट कर सकते हैं कि आप ऐसे किसी स्थान पर जा चुके हैं।
वसुधारा बद्रीनाथ –
वसुधारा माना गांव से 7 किमी के ट्रेक पर है जो माना गांव बद्रीनाथ से 2 किमी की दूरी पर स्थित है। राज्य परिवहन की बसें बद्रीनाथ और ऋषिकेश, जिसकी दूरी 280 किमी है के बीच नियमित रूप से चलते हैं। स्थानीय परिवहन संघ और राज्य परिवहन की बसें तथा टैक्सी बद्रीनाथ और ऋषिकेश (280 किमी), हरिद्वार (300 किमी), देहरादून (325 किलोमीटर) और दिल्ली (540 किमी) के बीच नियमित रूप से चलते हैं।
बद्रीनाथ से केदारनाथ की दूरी?
केदारनाथ और बद्रीनाथ के बीच की कुल दूरी लगभग 243 किमी है। इसमें 16 किमी केदारनाथ ट्रेक और 5 किमी गौरीकुंड-सोनप्रयाग मार्ग भी शामिल है। और सड़क मार्ग से सोनप्रयाग से बद्रीनाथ की दूरी 222 किमी है। और इस यात्रा में लगने वाला समय लगभग 7 घंटे 33 मिनट का है। और यह आपके चलने की गति पर भी निर्भर करेगा।
केदारनाथ से बद्रीनाथ रूट मेप –
बद्रीनाथ से केदारनाथ का मुख्य मार्ग
- केदारनाथ → गौरीकुंड
- गोरीकुंड → सोनप्रयाग ->
- सोनप्रयाग → फाटा
- फाटा → गुप्तकाशी
- गुप्तकाशी → कुंड
- कुंड → चंद्रापुरी
- चंद्रापुरी → अगस्तमुनि
- अगस्तमुनि → तिलवाड़ा
- तिलवाड़ा → रुद्रप्रयाग
- रुद्रप्रयाग → गौचर
- गौचर → कर्णप्रयाग
- कर्णप्रयाग → चमोली
- चमोली → पीपलकोटि
- पीपलकोटि → जोशीमठ
- जोशीमठ → गोविंद घाट
- गोविंद घाट → बद्रीनाथ
बद्रीनाथ यात्रा का कुल खर्चा?
अगर बात करें बद्रीनाथ में रहने और खाने पीने और घूमने के खर्चे की तो कुल खर्चा लगभग 3,000 से 4,000 प्रति व्यक्ति तक आयेगा।
बद्रीनाथ से संबंधित प्रमुख प्रश्न | FAQ
दिल्ली से बद्रीनाथ की दूरी?
533 किलोमीटर NH 7 के द्वारा
ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी?
291.8 किलोमीटर NH 7 के द्वारा
हरिद्वार से बद्रीनाथ की दूरी?
315.6 किलोमीटर NH 7 के द्वारा
देहरादून से बद्रीनाथ की दूरी?
328.4 किलोमीटर NH 7 के द्वारा
बद्रीनाथ की यात्रा में क्या विशेष है?
बद्रीनाथ की यात्रा में आदित्यवार्ती धाम के पवित्रता और आध्यात्मिकता का अनुभव होता है, जो श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देता है।
बद्रीनाथ में कितने दिनों के लिए रुकना चाहिए?
आमतौर पर, बद्रीनाथ यात्रा के लिए 2-3 दिन की आवश्यकता होती है, जिसमें यात्रा, धार्मिक कार्यक्रम और स्थानीय दर्शनीयताओं का आनंद लिया जा सकता है।
बद्रीनाथ के पास आकर्षणीय स्थल क्या हैं?
बद्रीनाथ के पास कई आकर्षणीय स्थल हैं जैसे कि प्राचीन महकाली मंदिर, अदिगुरु शंकराचार्य समाधि स्थल, तपोवन, ब्रह्मकम्बल आदि।
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